आज दिनांक 19 अप्रैल को ,बिहार का गौरव एवं विश्व का धरोहर कहे जाने वाले नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन माननीय भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कर कमलों द्वारा किया गया ।
नया परिसर नालंदा विश्वविद्यालय के पुराने खंडहर के पास अवस्थित है जिसकी स्थापना , नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम 2010 के अधीन किया गया था । यह अधिनियम 2007 में फिलीपींस में होने वाले दूसरे एशिया शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय का परिणाम था ।
माननीय प्रधानमंत्री , परिसर के उद्घाटन से पहले प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के कैंपस में मौजूद सभी खंडहरों का अवलोकन किया । उन्होंने परिसर के अपने उद्घाटन सम्बोधन में कहा कि ” मुझे तीसरे कार्यकाल के लिए शपथ ग्रहण करने के बाद पहले 10 दिनों में ही नालंदा आने का अवसर प्राप्त हुआ है। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है और इसे मैं भारत की विकास यात्रा के एक शुभ संकेत के रूप में देखता हूँ। नालंदा केवल एक नाम नहीं है, यह एक पहचान है, एक सम्मान है। नालंदा एक मूल्य, एक मंत्र, एक गौरव, और एक गाथा है। नालंदा इस सत्य का उद्घोष है कि आग की लपटों में पुस्तकें भले ही जल जाएं, लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं।
उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि नालंदा भारत के अतीत का पुनर्जागरण मात्र नहीं है बल्कि इससे विश्व के अनेक देशों ,खासकर एशिया के अनेक देशों की विरासत जुड़ी है । इतना हीं नहीं ये देशें नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्जागरण में भागीदार भी हैं । मैं इस शुभ अवसर पर अपने मित्र देशों अभिनंदन करता हूँ ।
उन्होंने बिहार के लोगों को बधाई देते हुए कहा कि यह परिसर बिहार के लिए एक प्रेरणा है जो बताता है कि बिहार किस तरह अपने गौरव को वापस लाने के लिए विकास के राहों पर सतत आगे बढ़ रहा है ।
नालंदा विश्वविद्यालय का प्राचीन : अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा का केंद्र
नालंदा विश्वविद्यालय कि स्थापना ५ वीं शताब्दी में गुप्त कल में किया गया था । इसकी स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमार गुप्त प्रथम (४५० -४७०)को जाता है । इस विश्वविद्यालय को गुप्त शासकों के उतराधिकारियों का पूर्ण सहयोग मिला । इतना हीं नहीं गुप्त शासकों के पाटन के बाद भी आने वाले शासकों ने इसके विकास और समृद्धि में अपना पूर्ण सहयोग दिया । इस विश्वविद्यालय को महान सम्राट हर्षवर्धन और पल शासकों का सरक्षण भी प्राप्त हुआ ।
यह विश्वविद्यालय प्राचीन भारत के मगध साम्राज्य ( आधुनिक बिहार ) का एक बहुत बड़ा बौद्ध मट्ठ था जो ५ वीं शताब्दी से लेकर १२०० ई० तक अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा का केंद्र रहा है । यहाँ चिकित्सा शास्त्र , वेद , तर्कशास्त्र ,व्याकरण इत्यादि कि शिक्षा दी जाती थी ।
११९९ ई० में बख्तियार खिलजी द्वारा आग लगाकर इसे नष्ट कर दिया गया ।